Saturday, December 15, 2012

Gulzar : Times Literary Carnival

What a Rocking weekend , ISKON temple ,Dev Anand statue at Band Stand promenade,Time literary carnival at Mehboob studio , listening Gulzar Saheb , seen him at such a close distance , also seen Waheeda Rehman , tried to talk to her , but too much rush , then Sabir bros Sufiana sham ..

Times literary carnival was held at Mehboob studios , Bandra 7-9 Dec.2012 , almost 120 authors , writers took participation .Event I attended was auto biographical book titled "Dil Dhoondta Hey" ,Penned by Nasreen Munni Kabir on Gulzar’s life , and question answer session hosted by Times Filmfare editor Jitesh Pillai , Gulzar Saheb told that he will prefer to answer in Hindi , that is why I also thought that why not write this post in Hindi.












टाइम्स ग्रुप literary carnival जो की महबूब स्टूडियो में रखा गया था , 7 से 9 दिसम्बर 2012, फ्री एंट्री , रजिस्ट्रेशन इन्टरनेट या फिर महबूब स्टूडियो .मेरा इंटरेस्ट था गुलज़ार साहिब के प्रोग्राम में , जो के 9th दिसम्बर शाम 5:30 पर था , में अमिता और Nicx , तीनो 5 बजे ही पहुंच गए महबूब स्टूडियो , स्टेज बाहर गार्डन एरिया में ही था , 5:30 के थोडा पहले देखा तॊ वहीदा रहमान भी वहां ऑडियंस में एक लेडी के साथ आय्यी थी , वहीदा रहमान इतने नज़दीक ,वाह क्या कहें बाद में गुलज़ार , मुन्नी नसरीन कबीर और Filmfare के एडिटर जितेश पिल्लै स्टेज पर आए , जैसा की होता हे ऑटोबायोग्राफी “ दिल ढूँढता है ” को लॉच किया गुलज़ार साहिब ने .

बाद में सवाल जवाब का दौर चला , जिसका जवाब दिया गुलज़ार & नसरीन कबीर ने , काफी इंटरेस्टिंग सेशन  था , और खासकर जो nostalgic experience शेयर हुए वो यादगार रहेंगे जैसे की , 1st ब्रेक मिलना बंदिनी में “ मोरा गोरा अंग लेयेले " जब गीतकार शेलेन्द्र ने गुलज़ार जो की विमल रॉय को असिस्ट कर रहे थे से कहा की एक गाना आप लिखो , .गुलज़ार और पंचम की दोस्ती के किस्से जैसे की चाभी और फेमस लगेज वाला किस्सा मतलब “ मेरा कुछ सामान ”,

गुलज़ार साहेब की हमेशा से एक अलग स्टाइल रही

जैसे की कजरारे का “ आंखे भी कमाल करती हैं personal से सवाल करती हैं “

या बीडी जलाए ले जिगर से पिया ,

या जा पडोसी के चूल्हे से आग लेयी ले ” ,

और “ हमने देखी हे उन आँखों की महकती खुशबू ..

मणि रत्नम ऐ .र रहमान की कुछ बातें, स्काइप के बारे में , और खास कर संजीव कुमार के बारें में जिसे वो प्यार से हरी भाई कहते थॆ का किस्सा नमकीन के टाइम उनकी लेट लतीफी को लेकर और जब तीनो महान हेरोइनेस वहीदा , शर्मीला और शबाना ने फैसला किया की वो हरी भाई से बात नहीं करेंगी लेकिन वो कैसे तीनो  अपनों को रोक नहीं पायीं जब हरी भाई ने एक एक्सीलेंट शॉट पूरा किया और तीनो उनसे गले मिल गयीं .

कुछ और जो विषय ,जैसे की पार्टीशन , शहर , बंगला डायरेक्टर्स , काफी इंटरेस्टिंग डिस्कशन रहा और बीच बीच में कुछ शेर , कविताओं की कुछ पंक्तियाँ , कुछ यादगार लाइन .

जैसे की , “ जब तक लहू न निकले में हर जख्म को ....“

खयालो का कोई वीजा नहीं होता सपनो की कोई सरहद नहीं होती ......हर रात सरहद के उस पार मेहदी हसनसे मिलकर आजाता हूँ ....

फिर जिक्र हुआ विशाल भरद्वाज का , जो की गुलज़ार साहिब के शब्दों में “ की वो मेरा एक एक्सटेंशन हे “

वहीदा जी जो की खुद वहां मोजूद थॆ के बारे में वो नमकीन के टाइम का गोबर वाला किस्सा , की इतना भी रीयलिस्टिक होने की जरूरत नहीं की गोबर ही भर दो पूरा .

सवाल काफी अच्हे थॆ , साथ ही दाद देनी पड़ेगी नसरीन कबीर की ये ऑटोबायोग्राफी उन्ही ने लिखी हे , के इंटरप्रिटेशन की , ऑटोबायोग्राफी मैं ऐसा नहीं की बस कुछ भी जो इंटरेस्टिंग हुआ हो वो लिख दो ,हो सकता हे  उस्ससे कई लोगों को चोट पहुंचे ,

एक अलग ही तुजुर्बा रहा , लगा की जीवन सफल हुआ , गुलज़ार साहेब और वहीदा एक साथ ..


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