Monday, February 20, 2012

Ghost Riders : Visuals

















I have not seen this entire  movie , only seen parts/trailers & YT downloads, I just feel amazed by the artist's creative imagination while picturising this scene ,having fire & dark colours in the background , horse , awesome..
Sequel is now released .

Monday, February 13, 2012

Reversible



रिश्ते और समय अगर reversible  होते , तो मैं reverse कर देता कई रिश्तों को ,कई पलों को ,
समेट कर रख लेता कईओं को , जो चले गए , छूट गए , रोक लेता उन्हें उस वक़्त या reverse कर लेता.


कुछ और देर देख लेता माँ के सफ़ेद बालों को , शिकायत भी ना करता की बाल हमेशा बिखरे क्यों रहते हैं , बनाती क्यों नहीं , क्यों आज भी कोई  बूढ़ी  दिखती हे तो क्यों बालों पर ही ध्यान जाता हे ,
क्या  ढूँढता हूँ   मैं उनमे .
इसलिए आज मन करता हे टुकुर के बाल बनाऊं , शायद कमी रह गयी थी तब जो अब सोचता हूँ पूरी  करू
क्यों नहीं कोशिश करी कभी तुम्हारे बल संवारने की उस वक़्त
हमेशा इंतज़ार किया तुम्हारे शाम को स्कूल से वापस लोटने का , हमेशा वो फल हाथों से ले लिए ,
क्यों नहीं छू कर देखा उन झूरी वाले हाथों  को जो वज़न उठाने से लाल हो जाते थे
तब  देखता तो शायद वो लकीरें भी देख पाता जो छोटी होती जा रही थी
पड़ पाता तो शायद कोशिश करता उन्हें और लम्बा करने का


याद हे दसवीं की मार जब पढने के बजाय  मैं  कंचे खेल रहा था , शायद हाथों से ही मारा था
पीठ पर आज भी  ढूँढता  हूँ की शायद कोई निशान मिल जाय , अच्हा होता की अगर थोडा और जोर से या बेंत से मारा होता तो निशान पड़ते , तो कम से कम आज उन्हें स्पर्श करके तुम्हारा अहसास तो कर लेता .
बस तुम्हारी  शाल हे , जो कभी कभी ओड लेता हूँ.


कुछ दर्द तो अच्हे भी लगते हैं भले ही तकलीफ दें तो उनको भी क्या reverse करता , अगर सभी अच्हे होते तो फिर याद क्यों आते क्यों सामने आके खड़े ह़ो जाते बार बार .
अगर सब अच्हा होता तो कुछ यादें ही ना होती
अगर कुछ तकलीफें ना होती कुछ कमी नहीं होती तो कैसे कई दुसरे रिश्ते संभाल पाता में
और अगर अच्हे रिश्ते  reverse ह़ो जाते , तो  शायद ज्यादा तकलीफ देते .
तो ये ही अच्हा हे रिश्तों को वैसे ही रहने दिया जाये जैसे हैं

Poem by me 

Sunday, February 12, 2012

रेत



Café Reminiscence , Ret , Poem












सोचा  था  मुट्ठी  में  कुछ  यादों  को  ले   कर  कुछ  दूर  चलूँ
थोड़ी दूर चल कर देखा  तो पाया वो सब कब हाथों से फिसल गए जैसे की मुट्ठी से रेत , की पता ही नहीं चला .
रह गया फिर वो ही खालीपन ,मुठी रही खाली की खाली ,
बस उन यादों के कुछ पल चिपके  रह गए रेत के कुछ कणों की तरह .
शायद वो बचे हुए पल ही थे जो मेरे अपने थे , तो वो जो बाकि जो छूठ गए थे वो किसके थे
सोचा तो पाया की वो थे तो मेरे ही लेकिन शायद उन पर मेरा उतना हक ही नहीं  था .
या मेने बेवजह कोशिश करी उन्हें साथ लेकर चलने की ,
रेत को भी कभी भला कोई बांध कर  चल पाया हे कोई .
मुट्ठी को जितना जोर से दबाओगे  तो रेत उतनी ही तेजी से फिसलेगी , और निशान छोड़  जाएँगी
फिर सोचा जाने दो वो रेत के कण ही तो थे ,वो हाथों की लकीरें तो नहीं बदल पाएंगे , 
शायद वो थे ही नहीं उन लकीरों में कभी भी , 
या शायद सिर्फ ह़ो  थोड़ी  देर  के  लिए  ही , 
हाथों  में बहुत सी छोटी लकीरें थोड़े ही दिखती हैं 
शायद वो भी हो कहीं उन छोटी लकीरों में    शायद  ..
वो हमेशा ही रहे होँ मेरी destiny का एक हिस्सा बन कर , उतना ही वजूद रहा हो उनका मेरे लिए ,,, शायद .


सोचा  था मुड कर ना देखूं , ना ही ढूँढू उन रेत के कणों को , भला वो भी कभी मिले हें किसीको वापस .
फिर सोचा चलो आगे बड़ो  ,कुछ पल तो हें यादों  के आखिर साथ में  जिन्हें मेने संभाल कर रखा हे पुडिया में बांध कर ,
रेत के कणों के रूप में.

Poem by Me 

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