Friday, June 28, 2013

Rajasthan trip

Café Reminiscence

Café Reminiscence

Café Reminiscence


















Café Reminiscence
All Pics by Chote


















It was indeed a  pleasure trip , infact a bonus after 3 months hectic Kuwait trip, I wanted to be away , meet friends , drink , travel , n of course food.Finally I went to Rajasthan ,Met old pals , had drinks , also with family members visited Shekhavati Dhaba after almost 20 yrs , where we used to go during our late night driving trips , Chulha moti roties , special daal , churma, ghee ,not much variety but worth .
While on the way to dhaba ,Chote clicked these awesome colourful clicks of Banjaraas (Gypsies) Luhars , how colorful they are , all were looking quite happy even they were shifting their base to some other location may be heading towards some mela's, with all their belongings including live stock, no worries!
Walk down memory lane.

Tuesday, June 25, 2013

शाम से आज आँखों में नमी सी है


Café Reminiscence













मुज्हे उसकी प्रोफाइल pic अचछी लगी तो मेने यूँ ही कहा की एक बस आँखों की तस्वीर भेज दो , क्योंकि उसमे मेने नमी देखी , इतनी कम उम्र में पानी , वो भी हमेशा ? उसने कहा दूसरी क्यों उसे ही crop कर देती हूँ , मेने तॊ बस यूं ही ली थी , तब पता नहीं था की वो एक कहानी बयां करेंगी .

एक बार जब हम धूप में जा रहे थे , उससे कहा चलो तुम्हे Gucci या Dior के गॉगल्स दिलवा देता हूँ , नहीं तो तुम्हारी आँखों की नमी चली जाएगी , उसने मजाक में कहा इतनी सस्ती गिफ्ट्स , देना हे तो कुछ कीमती दो , फिर कहा मुज्हे वो ज्योमेट्री बॉक्स ला दो जैसा आप Sid के लिए लाये थे ,पिंक कलर का जिसमे बटन दबाने पर शार्पनर बाहार आता हे या फिर वो लकड़ी की बेलगाडी जिसे वसंतसेना (Link here) ने अपने गहनों से भर कर उस छोटे बालक को दी थी क्योंकि उस बालक के सब दोस्तों के पास अच्हे अच्हे खिलोने थे और वो रो रहा था , गहनों से सजी उस बेलगाडी पाकर वो बालक बहुत खुश था , तब मेने कहा वो गहनों तो बहुत महंगे होंगे , में कैसे ?

तब वो हंसी और कहा बुद्धू , मुज्हे वो गहने नहीं , उस बालक की वो लकड़ी की बेलगाडी चाहिये , तब में हंसा .

फिर मेने पूछा आँखों में हमेशा नमी क्यों , फिर उसने कहा इस पिक्चर को पहनो मेने उस तस्वीर के प्रिंट को एक चश्मे जैसा पहना , तो एक डाक्यूमेंट्री न्यूज़ जैसा कुछ दिखा , ठीक वैसा ही जैसा में खुद अपनी आँखों से देखता रहता हूँ उन पुरानी यादों को , हमेशा आँखों के सामने आती रहती हैं ,कुछ अच्छी कुछ तकलीफें वाली , ख़ैर

पूरी रील उसने सफ़ेद बैंडेज से लपेट रखी थी जैसे की चोट पर बांधते हैं थोडा खोला तॊ सिर्फ ब्लेंक ही नज़र आया बस कुछ जगह गुलाब के फूलों की पंखुरिया थी कुछ जगह रुई की फाये रखे देखे , कुछ जगह थोड़ी पानी की बुँदे दिखी , मेने कहा मुज्हे तो कुछ दिखा ही नहीं , तब उसने बताया की आपको सिर्फ वो ही नज़र आयगा जो आप से जुड़ा हे , फिर मेने पूछा की वो पंखुरिओं और रुई के फायों का क्या मतलब हे , तब वो मुस्कराई और उसने कुछ भी नहीं कहा ,  बस इतना बताया की वो बूंदें उन बारिशों की हैं जो उसे अचछी लगी तभी उन्हें सहेज के रखा हे ,,..फिर काफी आगे जाने के बाद एक संदूक दिखा , उसे खोला तो उसमे एक गिफ्ट दिखी , तब याद आया जो में बाहर से लाया था शायद ४-५ साल की होगी वो तब , गिफ्ट के पास एक खाली जगह दिखी जिसे उसने रुई के फाये से ढक रखा था बस वो ज्योमेट्री बॉक्स की पिक्चर थी , तब में समझा वो सिद्धार्थ वाले बॉक्स की बात कर रही थी की अब वैसा ही ला दो मुज्हे ...काश तब .


अभी भी जवाब तलाश कर रहा हूँ वो नमी , फाये , .. ब्लेंक ,, शायद कभी ...!

अंदाज़ा भी नहीं था की एक प्रोफाइल तस्वीर भी एक ज़िंदगी बयां कर सकती हे , , लेकिन अब कोशिश करूंगा की वो ज्योमेट्री बॉक्स की जगह खाली ना रहे , सिर्फ उसके ही नहीं जो भी जुड़ा हे किसी न किसी रूप में , किसी भी मोड़ पर , छोटे , बड़े , कोई भी ..



Eye Donation & Reminiscences



मुजहे गुस्सा तो आया जब रिसेप्शनिस्ट ने फॉर्म को Rejected की स्टाम्प लगा कर वापस कर दिया मेने पूछा तब उसने बताया की Eye डोनेशन फॉर्म में आपने नीचे ये क्या लिखा हे ?

Attachments :

HDD
कुछ सामान

उसने बतया की Eye डोनेशन में हम अभी सिर्फ फॉर्म लेते हैं साथ में कुछ सामान नहीं , और बाद में भी नहीं , फिर उसने पूछा की ये HDD क्या हे मेने उसे बताया Hard Disk Drive , उसने पूछा कितने GB या TB की , मेने बताया हिसाब नहीं , अभी तक जो भी इन आँखों को याद हे वो सब इसमे स्टोर है, ये अलग से नहीं है तो वो तैयार हो गया , फिर उसने पूछा सामान कहाँ है मेने कहा बाहार , वो विजिटिंग चेयर के पास आया , की कहाँ है , मेने बताया बाहार है रोड पर , बाहर आने पर मेने उसे वो ट्रक दिखाया , जिसमे वो सब सामन में लोड करके लाया था , कहा चेक करलो . मजदूर बुलाने पड़ेंगे ..फिर उसने कुछ सामान को चेक किया , ज्यादातर पुराना और टूटा फूटा था , आखिर में पूछा कोई perishable आइटम तो नहीं तब मेने उसे वो पुराना Alwyn का फ्रिज खोल कर दिखाया , उसमे एक रोटी जो माँ सर्दियों के दिनों में सिगड़ी पर बनाती थी , एक सब्जी , एक उनका लेयर वाला परांठा और एक आधा खाया आमलेट , उसने पूछा बाकि तॊ ठीक हे लेकिन ये आमलेट ? तब मेने बताया में मेरा सबसे बड़ा भाई जो एकदम केयरलेस और बेतरतीब है उससे बचा के ये मेने रखा है , यूँ होता था उन दिनों की,, हम दोनों जब एक ही थाली में साथ खाते थे और आमलेट बनता था तॊ में तो हिसाब से खाता था लेकिन बड़ा भाई आधी रोटी में ही एक पूरा आमलेट खा जाता था , उसका कैलकुलेशन मुजहे कभी समज ही नहीं आई .


फिर मेने उसे बतया की ये सामन साथ में डोनेट करना जरूरी है नहीं तो मेरी आँखें इन्हे ही तलाशती रहेंगी , फिर वो मुजहे एक शानदार से ठन्डे बड़े कमरे में ले गया जहाँ पोस्ट ऑफिस में अन्दर जैसे होते हैं वैसे ही छोटे छोटे Bins बने थे सिर्फ 2 उँगलियाँ ही जा सकती हैं , वो बोला अगर तुम ट्रक का सारा सामान कॉम्पैक्ट करके इस साइज़ का बना दो तो वो फॉर्म एक्सेप्ट कर लेंगे , मेने भी सोचा कुछ आने वाले सालों में हो सकता हे कोई नयी टेक्नोलॉजी आ जाये जो सामान को एकदम छोटा कर दे..जैसे US में पुरानी कारों को बॉक्स जैसा बन देते हैं .

Still Waiting!

कंचे :(Marbles)

Poem or short story ??  : Whatever ...


धुन्दला सा याद हे वो लड़का पतला दुबला सा था , उसके बाल हमेशा सामने रहते थे , शायद कंघी करने की जरूरत ही नहीं थी या वो करता होगा लेकिन वो सामने ही आ जाते होंगे , कभी लम्बे बाल होते थे तॊ आँखों तक आ जाते थे , उसे मेने ज्यादातर एक काली निकर में देखा था जिसमे उल्टा V कट बना था दोनों  साईड पर , ऐसा नहीं की वो हमेशा वो ही पहनता था लेकिन वो ही अक्स याद हे एक बार  मेने उससे पूछा भी तॊ उसने बताया उसके पास दो सैम टू सैम निकर  हैं और उनकी जेबें बड़ी हैं और उसे पसंद हे , कई बार उसकी बुश्कोट के बटन ऊपर नीचे भी रहते थे ,

वो तपती दोपहरी  में घर के बरामदे से चुपचाप निकल जाता था चप्पल पहन कर दोनों जेबों  में खूब सारे कंचे भर कर , नीले हरे , पीले , सफ़ेद और पानी जैसे भी होते थे और उनमे एक बड़ा कंचा भी होता था वो कुछ सेट जैसा था जैसे पचास में एक बड़ा , हाँ लाल रंग कम होता था , उसकी जेबें उन मट्टी से सने कंचों से भर जाती थी , कुछ हार जीत का खेल भी होता था शायद , You Tube या Google में देखूँगा वो तो आजकल अलादीन की तरह हे कुछ भी मांगो यानि ढ्ँढो सब  मिलता हे की क्या  खेल  था वो शायद सर्च में मिल जाये हो सकता हे उस लड़के की कोई तस्वीर ही मिल जाये , जेब में कंचे और आँखों तक बाल .

माँ उसे धूप में खेलने पर बहुत डाँट़ती थी लेकिन उसकी बहने उसे बचा लेती थीं पढने में ठीक था ,लेकिन दोपहर में खलेने  पर डाँट़ तो पढनी ही थी , मुझे बाद में समझ में आया की वो इको साउंड में उसके दोस्त उसे क्या आवाजें लगाते  थे दोपहर में , सोचते थे कोई नहीं सम्झेगा, अब हंसी  आती हे उनकी उस  बचपन  की बेफकूफी भरी सोच पर .. अब मुझे लगता हे की मुज्हे भी कोई ऐसी आवाज  लगाये , कई  बार सोते हुए लगता हे वो ही आवाज हे खिड़की खोलता हूँ  तो सिर्फ  गाडिओं की और किसीके  टीवी चलने  की आवाज सुनाई देती  हे वो इको साउंड वाली आवाज कहीं खो गयी .

इंतज़ार में हूँ की वो लड़का कभी फिर दीखे और में उससे पूंछू की वो क्या पुकारते थे उसका MP3  मिल जाय तो उसे कालर tune बना कर सहेज कर रख लूं जब भी कभी अकेला  होऊं तो उसे रीप्ले कर लूं  और लोट जाऊं  उन दिनों में जब तपती दोपहर भी सुहानी लगती थी , सोचता हूँ क्यों  नहीं AC  में वो आप्शन मिल जाय की एक बटन हो जिस  पर लिखा  हो धूप और केलिन्डर सेट करो और वो पुरानी धूप कमरे  में बिखर जाय और में  पलंग से उतरूं कारपेट हटाऊं और नंगे पांव फर्श पर रखूँ तो वो वैसे ही जलें  जैसे की उन दिनों जलते  थे .

वो लड़का कभी मिल जाय  तो  उससे किसी भी कीमत पर वो मट्टी में सने हुए कंचे खरीद लूँ और उन्हें छु कर देखूं , आज कल हाथ मट्टी से गंदे ही नहीं होते कभी गंदे होते भी हैं तो बस पेट्रोल की स्मेल आती हे., और फिर उससे वो टूटी हुई कांच की चुडिओं के टुकड़े   भी ले लूं जिन्हें  वो माँ से मार  खाने  के बाद टूटने  पर संभाल कर अपने ज्योमेट्री बॉक्स में रख लेता  था सहेज कर., वो कंचे और चुडिओं के टुकडो को में अपने शेल्फ   में रखे    Swarovski के सेट को हटा कर उनकी जगह   रख दूँ .

वो लड़का ..........

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