Poem or short story ?? : Whatever ...
धुन्दला सा याद हे वो लड़का पतला दुबला सा था , उसके बाल हमेशा सामने रहते थे , शायद कंघी करने की जरूरत ही नहीं थी या वो करता होगा लेकिन वो सामने ही आ जाते होंगे , कभी लम्बे बाल होते थे तॊ आँखों तक आ जाते थे , उसे मेने ज्यादातर एक काली निकर में देखा था जिसमे उल्टा V कट बना था दोनों साईड पर , ऐसा नहीं की वो हमेशा वो ही पहनता था लेकिन वो ही अक्स याद हे एक बार मेने उससे पूछा भी तॊ उसने बताया उसके पास दो सैम टू सैम निकर हैं और उनकी जेबें बड़ी हैं और उसे पसंद हे , कई बार उसकी बुश्कोट के बटन ऊपर नीचे भी रहते थे ,
वो तपती दोपहरी में घर के बरामदे से चुपचाप निकल जाता था चप्पल पहन कर दोनों जेबों में खूब सारे कंचे भर कर , नीले हरे , पीले , सफ़ेद और पानी जैसे भी होते थे और उनमे एक बड़ा कंचा भी होता था वो कुछ सेट जैसा था जैसे पचास में एक बड़ा , हाँ लाल रंग कम होता था , उसकी जेबें उन मट्टी से सने कंचों से भर जाती थी , कुछ हार जीत का खेल भी होता था शायद , You Tube या Google में देखूँगा वो तो आजकल अलादीन की तरह हे कुछ भी मांगो यानि ढ्ँढो सब मिलता हे की क्या खेल था वो शायद सर्च में मिल जाये हो सकता हे उस लड़के की कोई तस्वीर ही मिल जाये , जेब में कंचे और आँखों तक बाल .
माँ उसे धूप में खेलने पर बहुत डाँट़ती थी लेकिन उसकी बहने उसे बचा लेती थीं पढने में ठीक था ,लेकिन दोपहर में खलेने पर डाँट़ तो पढनी ही थी , मुझे बाद में समझ में आया की वो इको साउंड में उसके दोस्त उसे क्या आवाजें लगाते थे दोपहर में , सोचते थे कोई नहीं सम्झेगा, अब हंसी आती हे उनकी उस बचपन की बेफकूफी भरी सोच पर .. अब मुझे लगता हे की मुज्हे भी कोई ऐसी आवाज लगाये , कई बार सोते हुए लगता हे वो ही आवाज हे खिड़की खोलता हूँ तो सिर्फ गाडिओं की और किसीके टीवी चलने की आवाज सुनाई देती हे वो इको साउंड वाली आवाज कहीं खो गयी .
इंतज़ार में हूँ की वो लड़का कभी फिर दीखे और में उससे पूंछू की वो क्या पुकारते थे उसका MP3 मिल जाय तो उसे कालर tune बना कर सहेज कर रख लूं जब भी कभी अकेला होऊं तो उसे रीप्ले कर लूं और लोट जाऊं उन दिनों में जब तपती दोपहर भी सुहानी लगती थी , सोचता हूँ क्यों नहीं AC में वो आप्शन मिल जाय की एक बटन हो जिस पर लिखा हो धूप और केलिन्डर सेट करो और वो पुरानी धूप कमरे में बिखर जाय और में पलंग से उतरूं कारपेट हटाऊं और नंगे पांव फर्श पर रखूँ तो वो वैसे ही जलें जैसे की उन दिनों जलते थे .
वो लड़का कभी मिल जाय तो उससे किसी भी कीमत पर वो मट्टी में सने हुए कंचे खरीद लूँ और उन्हें छु कर देखूं , आज कल हाथ मट्टी से गंदे ही नहीं होते कभी गंदे होते भी हैं तो बस पेट्रोल की स्मेल आती हे., और फिर उससे वो टूटी हुई कांच की चुडिओं के टुकड़े भी ले लूं जिन्हें वो माँ से मार खाने के बाद टूटने पर संभाल कर अपने ज्योमेट्री बॉक्स में रख लेता था सहेज कर., वो कंचे और चुडिओं के टुकडो को में अपने शेल्फ में रखे Swarovski के सेट को हटा कर उनकी जगह रख दूँ .
वो लड़का ..........
धुन्दला सा याद हे वो लड़का पतला दुबला सा था , उसके बाल हमेशा सामने रहते थे , शायद कंघी करने की जरूरत ही नहीं थी या वो करता होगा लेकिन वो सामने ही आ जाते होंगे , कभी लम्बे बाल होते थे तॊ आँखों तक आ जाते थे , उसे मेने ज्यादातर एक काली निकर में देखा था जिसमे उल्टा V कट बना था दोनों साईड पर , ऐसा नहीं की वो हमेशा वो ही पहनता था लेकिन वो ही अक्स याद हे एक बार मेने उससे पूछा भी तॊ उसने बताया उसके पास दो सैम टू सैम निकर हैं और उनकी जेबें बड़ी हैं और उसे पसंद हे , कई बार उसकी बुश्कोट के बटन ऊपर नीचे भी रहते थे ,
वो तपती दोपहरी में घर के बरामदे से चुपचाप निकल जाता था चप्पल पहन कर दोनों जेबों में खूब सारे कंचे भर कर , नीले हरे , पीले , सफ़ेद और पानी जैसे भी होते थे और उनमे एक बड़ा कंचा भी होता था वो कुछ सेट जैसा था जैसे पचास में एक बड़ा , हाँ लाल रंग कम होता था , उसकी जेबें उन मट्टी से सने कंचों से भर जाती थी , कुछ हार जीत का खेल भी होता था शायद , You Tube या Google में देखूँगा वो तो आजकल अलादीन की तरह हे कुछ भी मांगो यानि ढ्ँढो सब मिलता हे की क्या खेल था वो शायद सर्च में मिल जाये हो सकता हे उस लड़के की कोई तस्वीर ही मिल जाये , जेब में कंचे और आँखों तक बाल .
माँ उसे धूप में खेलने पर बहुत डाँट़ती थी लेकिन उसकी बहने उसे बचा लेती थीं पढने में ठीक था ,लेकिन दोपहर में खलेने पर डाँट़ तो पढनी ही थी , मुझे बाद में समझ में आया की वो इको साउंड में उसके दोस्त उसे क्या आवाजें लगाते थे दोपहर में , सोचते थे कोई नहीं सम्झेगा, अब हंसी आती हे उनकी उस बचपन की बेफकूफी भरी सोच पर .. अब मुझे लगता हे की मुज्हे भी कोई ऐसी आवाज लगाये , कई बार सोते हुए लगता हे वो ही आवाज हे खिड़की खोलता हूँ तो सिर्फ गाडिओं की और किसीके टीवी चलने की आवाज सुनाई देती हे वो इको साउंड वाली आवाज कहीं खो गयी .
इंतज़ार में हूँ की वो लड़का कभी फिर दीखे और में उससे पूंछू की वो क्या पुकारते थे उसका MP3 मिल जाय तो उसे कालर tune बना कर सहेज कर रख लूं जब भी कभी अकेला होऊं तो उसे रीप्ले कर लूं और लोट जाऊं उन दिनों में जब तपती दोपहर भी सुहानी लगती थी , सोचता हूँ क्यों नहीं AC में वो आप्शन मिल जाय की एक बटन हो जिस पर लिखा हो धूप और केलिन्डर सेट करो और वो पुरानी धूप कमरे में बिखर जाय और में पलंग से उतरूं कारपेट हटाऊं और नंगे पांव फर्श पर रखूँ तो वो वैसे ही जलें जैसे की उन दिनों जलते थे .
वो लड़का कभी मिल जाय तो उससे किसी भी कीमत पर वो मट्टी में सने हुए कंचे खरीद लूँ और उन्हें छु कर देखूं , आज कल हाथ मट्टी से गंदे ही नहीं होते कभी गंदे होते भी हैं तो बस पेट्रोल की स्मेल आती हे., और फिर उससे वो टूटी हुई कांच की चुडिओं के टुकड़े भी ले लूं जिन्हें वो माँ से मार खाने के बाद टूटने पर संभाल कर अपने ज्योमेट्री बॉक्स में रख लेता था सहेज कर., वो कंचे और चुडिओं के टुकडो को में अपने शेल्फ में रखे Swarovski के सेट को हटा कर उनकी जगह रख दूँ .
वो लड़का ..........
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