Sunday, December 29, 2013

कशमकश













आखिर अरूंधति ने पूछ ही लिया की क्या बात है कुछ खोयी हुई हो , हुआ यूँ की आश्विन अपने एक दोस्त और उसकी वाइफ अरूंधति जो मेरी भी अच्छी  दोस्त है के साथ हम यहाँ हिल स्टेशन पर घूमने आये हुए हैं ,शादी को सात साल हो गए हैं , सोचा चलो बाहर चलते हैं , कल शाम को गार्डन पार्टी चल रही रही थी , लेकिन पता नहीं अचानक मन कुछ अकेला रहने को कर रहा था , जैसे की कुछ याद करना चाहता हो , कुछ तलाश में था , पार्टी अच्छी होते हुए भी कुछ कमी लग रही थी , जिसे शायद उसने नोटिस किया होगा , शायद .

देर रात हो गयी थी सोचा कल सोचेंगे , तो सुबह जल्दी उठते ही मैने शाल लपेटी  और बाहर आ गयी तब आश्विन सो रहा था , सोचा क्यों डिस्टर्ब करूं , वैसे भी वो सोते हुए एकदम भोला सा एक दम carefree  लग रहा था , अब Bombay  में तो ऐसी नींद आने से रही , ऑफिस टेंशन .

मौसम ठंडा था होटल हिल टॉप लोकेशन पर है , सब तरफ हरियाली है , तो नीचे तरफ लेक साइड वाली कच्ची सड़क पकड़ी , सुबह सुबह परिंदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया था , में तो मेहमान थी उनके यहाँ घर तो उनका ही है ,निकली थी ये सोच कर की शायद सूकून मिले खुली हवा में और जान सकूं की क्यों कल मन नहीं लग रहा था , लेकिन ध्यान बार बार परिंदों की और चला जाता था , तब समझ आया की ये परिंदे किसकी याद दिल रहे हैं कुछ दिन पहले हर्ष का US  से फ़ोन आया था की वो कुछ दिन के लिए India  आ रहा है मिलना चाहता है , पूछा भी की मेरा नंबर कहाँ से मिला , लेकिन बताया नहीं , हुआ यूँ की कई साल पहले उसके US जाने के पहले और मेरी शादी के पहले कभी कभी उसका फ़ोन आता था और कई बार ऐसा हुआ की बैकग्राउंड में हमेशा परिंदों की आवाजें आती थी तो मैने पूछा  भी  ये परिंदे हमेशा तुम्हारे साथ चलते रखे हैं क्या , तो वो हॅस दिया , लगता है इन आवाजों ने उसकी याद ताज़ा कर दी .

 शायद कल मुझे कुछ आभास होने लगा था , पता नहीं .हमारे बीच वैसे तो कुछ कभी भी नहीं रहा , स्कूल छूटने के बाद शायद ही कभी देखा हो उसे , फिर क्यों ? उसका वो ही स्कूल वाला चेहरा तो याद रहता है हमेशा , प्राइमरी में थे हम दोनों , साथ ही बैठते थे लकड़ी की बेंच पर जो की स्याही से पूरी बदरंग हो गयी थी , सरकारी स्कूल जो था , वो हमेशा क्लास में लेट आता था , मुझे चोटी वाले  माड़साब को हमेशा सफाई देनी पड़ती थी की वो बाहर ही है बस आ रहा है , फिर वो दरवाजे पर हांफता भागता हुआ आता था , बुशकोट आधी बाहर , बाल सामने , घर से तो टाइम पर निकलता था लेकिन बस अटक जाता था रास्ते में कहीं भी कभी कंचे , गिल्ली डण्डा , या कोई मदारी खेल , तब उसे डांट पड़ती देर से आने पर रोज की तरह और मुजहे भी की तुम इसे घर से क्यों नहीं साथ लाती , लेकिन उसका घर स्कूल से दूसरी तरफ था , फिर कैसे .अच्छा तो फिर सब करना पड़ता था , पेंसिल छील कर दो , पता नहीं क्या करता था कई बार बोला ऊपर वाला हिस्सा मत खाया कर , कैसा था वो कुछ अजीब . खाना खाता तो ऐसा कभी नहीं हुआ की बुशकोट ख़राब नहीं करी हो हमेशा गिराता था , उसकी ये बेतरतीब तरीका  मुझे हमेशा  उसकी याद दिलाता है , कई बार में सोचती हूँ की आश्विन ऐसा क्यों नहीं करता , वो एक बहुत ही सलीके से खाने वाला , और सब काम भी एकदम systematic , और एक वो , तब मन करता था की इनका भी खाने में कुछ फैले तो अच्छा लगे , तब मन करता है कोई अच्छी सी ड्राइंग बनाये और में उसे बिगाड़ दूं.कई बार हम स्कूल से छूटने पर गावं के तालाब की तरफ चले जाते थी वहाँ वो पानी में पत्थर को तैराने की मतलब ५-७ टप्पे खिलाने की कोशिश करता रहता था .

आज मैने भी सोचा चलो लेक में try करके देखते हैं ये सोचकर में लेक तक आ गयी , कोशिश करी लेकिन पत्थर 2 टप्पे भी नहीं ले पाया , कहाँ वो 5 -7  कर लेता था .स्कूल पूरा होने  के बाद हम ने वो गावं भी छोड़ दिया बाद में उसे बस एक दो बार देखा होगा बड़े होने के बाद , लेकिन वो ज्यादा याद नहीं लेकिन उसका बचपन का साथ हमेशा कुछ याद दिलाता रहता है जब भी कभी किसी को कुछ वैसा ही करते देखती हूँ तो जैसे की उसकी आधी बाहर शर्ट , ख़राब  पेंसिल , कभी किसी बच्चे की कई बार मैने अनजाने में ही शर्ट बाहर निकाल दी फिर हंसी भी आयी की ये  क्या हो जाता है मुझे .

इतने सालों बाद उसके कॉल ने शायद मुझे  वापस उस वक़्त में पहुंचा दिया , मन बेचैन था शायद इस लिए अब कैसा होगा वो , क्यों मिलना चाहता  है , शादी करी की नहीं क्या वो भी मुझे याद करता होगा , अब लगता है करता होगा , नहीं तो कहीं से No. मालूम करके कॉल क्यों करता , ये ही कशमकश शायद बेचैन कर रही है .
क्या करूं उसे जवाब दूं मिलने का या फिर बहाना बना दूं.
देर हो रही है वापस चलना चाहिए , सब नाश्ते पर इंतज़ार कर रहे होंगे.

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