Wednesday, July 10, 2013

254















काफी अरसे के  बाद जाना हुआ २५४ में , साफ़ सुथरा सा लगा , हरियाली हे लेकिन वो २ आम के  , अमरुद और नींबू के पेड़ अब नहीं रहे , दोपहर ,में गली के बच्चे पत्थर फेंकते होंगे ,बहुत  ढूंडा लेकिन कोई भी पत्थर नहीं मिला सोचा था मिले तॊ अपने साथ ले चलूँ रखूं अपने संदूक में बचा कर
.वाश बेसिन पर डैडी की शेव का वो सफ़ेद साबुन जो प्लास्टिक की डब्बी में आता था , नहीं था . नल ठीक करा लिया होगा नहीं तो वो तो हमेशा ही लीक करता रहता था पीतल की टोंटी की जगह स्टील वाली आ गयी थी ,, याद आया डैडी गीता भी कुर्सी टेबल यूज़ करके नोवेल जैसे पड़ते थे और बस आर्डर देते रहते थॆ , अब दें तॊ दिन भर हाथ बांध कर ही खड़ा रहूँ वहां ,  सिगरी की आग ठंडी हो गयी हो तॊ छू कर देखूं , लेकिन सिगरी भी नहीं .भाई ने  फिर भी संभाल कर रखा हे  सब वो ही,, उषा का बड़ा पंखा , वैसा ही कपडे सुखाने का तार ,Alwyn फ्रिज , रसोई में लगा मां पूछेगी खाना अभी लगा दूँ क्या  , पर.. 

No comments:

Post a Comment

test ad